भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कभी प्यार से मुस्कुराओ तो क्या है! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{KKGlobal}}
+
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
 
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की  / गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की  / गुलाब खंडेलवाल
 
}}
 
}}
[[category: ग़ज़ल]]
+
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
  

11:48, 22 मई 2010 का अवतरण


कभी प्यार से मुस्कुराओ तो क्या है!
हमें भी जो अपना बनाओ तो क्या है!

वही लौ इधर भी, वही लौ उधर भी
दिए को दिए से जलाओ तो क्या है!

नज़र आइना, रूप भी आइना है
मगर बीच में यह बताओ तो क्या है!

हमारे-तुम्हारे सिवा कौन है अब!
ये परदा घड़ी भर हटाओ तो क्या है!

गुलाब एक दिन पास पहुँचेंगे खुद ही
जो आओ तो क्या है, न आओ तो क्या है!