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यह मेरा जनपद है | यह मेरा जनपद है |
20:15, 22 मई 2010 के समय का अवतरण
यह मेरा जनपद है
विषाद को पीता है
वेदना को निगलता है
धुंध में सिसकता है
मेरे जनपद में केवल
अभाव का लोकगीत
गाया जाता है
सरसों के फूल
जैसे पीले चेहरों पर
सपनों की आह
सर्पदंश की तरह
नीले दाग़ बनकर
उभरती है
मेरे जनपद में स्वाभाविक
कुछ भी नहीं है
न जीवन का छंद
न चूल्हों का उत्सव
न सुकून की नींद
न उम्मीदों की सुबह
अंतहीन यंत्रणा की भट्ठी में
छटपटा रहा है मेरा जनपद ।