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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td> '''शीर्षक : पड़ताल शीतल पेयजल पीता है सूरज <br> '''रचनाकार:''' [[इब्बार रब्बीदिनकर कुमार]]</td>
</tr>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
सर्वहारा को ढूँढ़ने गया मैंबहुराष्ट्रीय कंपनियों का नया प्रतिनिधि लक्ष्मीनगर और शकरपुरसूरज नहीं मिला तो भीलों को ढूँढ़ा कियाडूबने से पहले शीतल पेयजल पीता हैकोटड़ा मेंगुजरात और राजस्थान के सीमांत परचाँद पठार में भटकासाबरमती एक बोतल की तलहटीपत्थरों शक्ल में अटकालौटकर दिल्ली आयाउभर आता है
नक्सलवादियों की खोज मेंबच्चे गाते हैं भोजपुर गयाविज्ञापन के गीत इटाढ़ी से धर्मपुरा खोजता फिराउछलते हैं-नाचते हैं कहाँअजीब-कहाँ गिरा हरिजन का ख़ूनअजीब आवाज़ के साथ धब्बे पोंछता रहाएक खुशहाल देश को झोपड़ी पे तनी बंदूकप्रायोजित किया जाता हैमहंत की सुरक्षा देखकर लौट रहा मैंकिस कदर गद-गद होता है दिल्ली अंग्रेज़ी में लिपटा हुआ देश शेयर बाज़ार के दलालों के फूले हुए चेहरे पाप और पुण्य की शिकन कोकभी महसूस नहीं कर सकते
बंधकों जीने की तलाश ले ज़रूरी शर्त बन गई पूर्णियाहै धमदहा, रूपसपुरधूर्त होने की कला सुधांशु के गाँवगरीबी की रेखा की ग्लानि से संथालों-गोंडों के बीचभूख देखता रहाभूख सोचता रहाभूख खाता रहाऊपर उठकर उधार की समृद्घि दिल्ली आके रुकातिरंगे पर फैल जाती है
रींवा के चंदनवन कूड़ेदानों मेंजूठन बटोरते हुए बच्चों ज़हर खाते हरिजन आदिवासी देखेपनासी, झोटिया, मनिका और अधनंगी औरतों के बारे मेंलंगड़े सूरज देखेलंगड़ा हललंगड़े बैललंगड़ गोहू, लंगड़ चाउर उगायालाठियों की बौछार से बचकरदिल्ली आया थमी कोई विधेयक पारित नहीं आगहोता बुझा नहीं उत्साहउमड़ा प्यार फिर-फिरबिलासपुररायगढ़जशपुरपहाड़ में सोने की नदी ठंडे चूल्हों को सुलगाने के बारे मेंलुटते कोरबा देखेछिनते खेतखिंचती लंगोटी देखीअंबिकापुर से जो लगाई छलाँगतो गिरा दिल्ली में फिर कुलबुलायाप्यार का कीड़ाईंट न्यायपालिका के भट्ठों में दबेपास हाथों को उठायाकोई विशेषाधिकार नहीं है आज़ाद कियाआधी रात पटकाबस-अड्डे पर ठंड बाज़ारू बनने की होड़ मेंबिकाऊ चौपाल में सुना दर्दऔर सिसकीकोटला मैदान से वोट क्लब तकनारे लगाता चला बना दिया गयाहै सूरज को `50 लाख बंधुआ के रहतेभारत माँ आज़ाद कैसे´हारा-थका लौटकरघर चाँद को धरती को आया रवाँई गया पहाड़ पर चढ़ाकच्ची पी बड़कोट पुरोला छानापांडवों से मिलाबहनों मनुष्य की खरीद देखीहर बार दौड़करदिल्ली आया ! गरिमा को
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