"बहुत काम बाक़ी है / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर
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बहुत काम बाक़ी है टाला पड़ा है । | बहुत काम बाक़ी है टाला पड़ा है । | ||
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मगर उनकी आँखों पे' जाला पड़ा है । | मगर उनकी आँखों पे' जाला पड़ा है । | ||
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सुराही पड़ी है पियाला पड़ा है | सुराही पड़ी है पियाला पड़ा है | ||
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करें क्या--जुबानों पे' ताला पड़ा है | करें क्या--जुबानों पे' ताला पड़ा है | ||
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बहुत सुर्ख़रूई थी वादों में जिनके | बहुत सुर्ख़रूई थी वादों में जिनके | ||
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जो मुँह उनका देखा तो काला पड़ा है | जो मुँह उनका देखा तो काला पड़ा है | ||
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कहाँ उठ के जाने की तैयारियाँ हैं | कहाँ उठ के जाने की तैयारियाँ हैं | ||
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सब असबाब बाहर निकाला पड़ा है ? | सब असबाब बाहर निकाला पड़ा है ? | ||
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यहाँ पूछने वाला कोई नहीं है | यहाँ पूछने वाला कोई नहीं है | ||
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जिसे भी जहाँ मार डाला पड़ा है ? | जिसे भी जहाँ मार डाला पड़ा है ? | ||
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भला कोई सीना है वो भी कि जिस पर | भला कोई सीना है वो भी कि जिस पर | ||
− | + | न बरछी पड़ी है, न भाला पड़ा है ! | |
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x x x x x x x x x x x x x x x x x | x x x x x x x x x x x x x x x x x | ||
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उसे बदलियों में भी पहचान लोगे | उसे बदलियों में भी पहचान लोगे | ||
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कि उस चांद-से मुँह पे' हाला पड़ा पड़ा है | कि उस चांद-से मुँह पे' हाला पड़ा पड़ा है | ||
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य' बादल की लट चांद पर है, कि मन को | य' बादल की लट चांद पर है, कि मन को | ||
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दबाए हुए कौड़ियाला पड़ा है | दबाए हुए कौड़ियाला पड़ा है | ||
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वो जुल्फ़ों में सब कुछ छुपाए हुए हैं | वो जुल्फ़ों में सब कुछ छुपाए हुए हैं | ||
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अंधेरा लपेटे उजाला पड़ा है | अंधेरा लपेटे उजाला पड़ा है | ||
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बहुत ग़म सहे हमने 'शमशेर', उस पर | बहुत ग़म सहे हमने 'शमशेर', उस पर | ||
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अभी तक ग़मों का कसाला पड़ा है | अभी तक ग़मों का कसाला पड़ा है | ||
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01:22, 25 मई 2010 के समय का अवतरण
बहुत काम बाक़ी है टाला पड़ा है ।
मगर उनकी आँखों पे' जाला पड़ा है ।
सुराही पड़ी है पियाला पड़ा है
करें क्या--जुबानों पे' ताला पड़ा है
बहुत सुर्ख़रूई थी वादों में जिनके
जो मुँह उनका देखा तो काला पड़ा है
कहाँ उठ के जाने की तैयारियाँ हैं
सब असबाब बाहर निकाला पड़ा है ?
यहाँ पूछने वाला कोई नहीं है
जिसे भी जहाँ मार डाला पड़ा है ?
भला कोई सीना है वो भी कि जिस पर
न बरछी पड़ी है, न भाला पड़ा है !
x x x x x x x x x x x x x x x x x
उसे बदलियों में भी पहचान लोगे
कि उस चांद-से मुँह पे' हाला पड़ा पड़ा है
य' बादल की लट चांद पर है, कि मन को
दबाए हुए कौड़ियाला पड़ा है
वो जुल्फ़ों में सब कुछ छुपाए हुए हैं
अंधेरा लपेटे उजाला पड़ा है
x x x x x x x x x x x x x
बहुत ग़म सहे हमने 'शमशेर', उस पर
अभी तक ग़मों का कसाला पड़ा है