भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भूला हुआ था आज तलक / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह |संग्रह=सुकून की तलाश / शमशेर बहादुर ...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=सुकून की तलाश / शमशेर बहादुर सिंह
 
|संग्रह=सुकून की तलाश / शमशेर बहादुर सिंह
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatGhazal‎}}‎
 +
<poem>
 
भूला हुआ था आज तलक अपने घर को मैं
 
भूला हुआ था आज तलक अपने घर को मैं
 
 
क्या जाने चल दिया था कहाँ के सफ़र को मैं
 
क्या जाने चल दिया था कहाँ के सफ़र को मैं
 
  
 
तुम मुस्कुरा रहे थे मुझे देख-देख कर
 
तुम मुस्कुरा रहे थे मुझे देख-देख कर
 
 
अपनी समझ रहा था हरेक की नज़र को मैं
 
अपनी समझ रहा था हरेक की नज़र को मैं
 
  
 
गर्दिश से उन निगाहों को कुछ होश आ गया
 
गर्दिश से उन निगाहों को कुछ होश आ गया
 
 
दुशमन समझ रहा था ख़ुद अपनी नज़र को मैं
 
दुशमन समझ रहा था ख़ुद अपनी नज़र को मैं
 
  
 
ऎसे भी मोड़ आए हैं चुपचाप बार-बार
 
ऎसे भी मोड़ आए हैं चुपचाप बार-बार
 
 
तकता था राहबर मुझे और राहबर को मैं
 
तकता था राहबर मुझे और राहबर को मैं
 
  
 
'शमशेर' और कुछ नहीं दुनिया जहान में
 
'शमशेर' और कुछ नहीं दुनिया जहान में
 
 
इक दिल है, ढूंढता हूँ, उसी बेख़बर को मैं
 
इक दिल है, ढूंढता हूँ, उसी बेख़बर को मैं
 +
</poem>

01:24, 25 मई 2010 के समय का अवतरण

भूला हुआ था आज तलक अपने घर को मैं
क्या जाने चल दिया था कहाँ के सफ़र को मैं

तुम मुस्कुरा रहे थे मुझे देख-देख कर
अपनी समझ रहा था हरेक की नज़र को मैं

गर्दिश से उन निगाहों को कुछ होश आ गया
दुशमन समझ रहा था ख़ुद अपनी नज़र को मैं

ऎसे भी मोड़ आए हैं चुपचाप बार-बार
तकता था राहबर मुझे और राहबर को मैं

'शमशेर' और कुछ नहीं दुनिया जहान में
इक दिल है, ढूंढता हूँ, उसी बेख़बर को मैं