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"जगत-घट, तुझको दूँ यदि फोड़ / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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जगत-घट, तुझको दूँ यदि फोड़

प्रलय हो जाएगा तत्‍काल,

मगर सुमदिर, सुंदरि, सु‍कुमारि,

तुम्‍हारा आता मुझको ख्‍याल;


न तुम होती, तो मानो ठीक,
मिटा देता मैं अपनी प्‍यास,
वासना है मेरी विकराल,
अधिक पर, अपने पर विश्‍वास!