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जगत है चक्की एक विराट
पाट दो जिसके दीर्घाकार-
गगन जिसका ऊपर फैलाव
अवनि जिसका नीचे विस्तार;
- नहीं इसमें पड़ने का खेद,
- मुझे तो यह करता हैरान,
- कि घिसता है यह यंत्र महान
- कि पिसता है यह लघु इंसान!