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"रहे गुंजित सब दिन, सब काल / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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रहे गुंजित सब दिन, सब काल

नहीं ऐसा कोई भी राग,

रहे जगती सब दिन सब काल

नहीं ऐसी कोई भी आग,


गगन का तेजोपुंज, विशाल,
जगत के जीवन का आधार
असीमित नभ मंडल के बीच
सूर्य बुझता-सा एक चिराग।