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"पहुँच तेरे आधरों के पास / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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पहुँच तेरे अधरों के पास

हलाहल काँप रहा है, देख,

मृत्‍यु के मुख के ऊपर दौड़

गई है सहसा भय की रेख,


मरण था भय के अंदर व्‍याप्‍त,
हुआ निर्भय तो विष निस्‍तत्‍त्‍व,
स्‍वयं हो जाने को है सिद्ध
हलाहल से तेरा अमरत्‍व!