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पहुँच तेरे अधरों के पास
हलाहल काँप रहा है, देख,
मृत्यु के मुख के ऊपर दौड़
गई है सहसा भय की रेख,
- मरण था भय के अंदर व्याप्त,
- हुआ निर्भय तो विष निस्तत्त्व,
- स्वयं हो जाने को है सिद्ध
- हलाहल से तेरा अमरत्व!