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पान पात्र था प्रेम छात्र!—
प्रेयसि के कुंचित अलकों में
उलझा था, बंदी पलकों में!
ग्रीवा पर थी मूँठ सुघर
मृदु बाँह, मधुर आलिंगन सुख
लेती थी प्रेयसि का उत्सुक!