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मेरी बहनें उसके आगे घुटने टेकती हैं | मेरी बहनें उसके आगे घुटने टेकती हैं | ||
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यह नहीं जानती कि क्या कह रही है | यह नहीं जानती कि क्या कह रही है | ||
22:54, 27 मई 2010 के समय का अवतरण
मेरी बहनें मेरे लिए चिंतित रहती हैं
मैं पूजा-पाठ तो ख़ैर करती ही नहीं
ईश्वर के बारे में मेरा मानना है कि
वह हमारी तरह कोई जीवित प्राणी नहीं है
वह गौरैया की तरह भी नहीं है
न ही घास की तरह है
वह कुछ सोच नहीं सकता
उसे नहीं मालूम
न्याय क्या होता है अन्याय क्या और इनसे
किसका वास्ता है
उसकी आँखें नहीं होतीं
आततायी और मासूम में वह
फ़र्क नहीं कर पाता
वह एक जगह से दूसरी जगह नहीं जा सकता
न सौदा-सुलुफ़ ला सकता है
उसे बाज़ार के भाव पता नहीं
ताज़ा बहते पसीने की गंध कैसी होती है
वह नहीं जानता
रोटी से उठती हुई खुशबू भी उसे
आह्लादित नहीं करती
उसने न कभी बादलों का गीत सुना
न धरती का गुनगुनाना
सुनना क्या होता है वह कैसे जाने ?
वह तो दरअसल हमारी ही कमज़ोरियों से बना है
हमारी अज्ञानताएँ हमारे अंतहीन लालच
और बात-बात पर डरना हमारा
इन्हीं ने बढ़ाया हौसला उसका
मेरी बहनें उसके आगे घुटने टेकती हैं
और प्रार्थना करती हैं
ईश्वर इसे क्षमा करना
यह नहीं जानती कि क्या कह रही है
रचनाकाल : 2001