भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पाव रोटी की बात / लीलाधर मंडलोई" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई …)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:09, 28 मई 2010 के समय का अवतरण

बावजूद इसके कि वह रो रही है
मैं नहीं करूँगा पावरोटी की बात
माँ दो दिन पुरानी रोटियों के बासी सूखे टुकड़ों को
भिगोयेगी गुड़ के पानी में और
करेगी इंतजार कि लौट सके
बासी सूखे टुकड़ों से
थोड़ा नरमानरम अहसास पावरोटी का
चुराता आँखें देखता रहूँगा माँ के साथ
पत्नी की कातर आँखों में
मैं बिल्कुल नहीं करूँगा पावरोटी की बात
मेरी जेब से एकदम बाहर
ये महीने के आखिरी दिन हैं