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"बंजर प्रदेश की महक कथा / लीलाधर मंडलोई" के अवतरणों में अंतर

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15:28, 28 मई 2010 के समय का अवतरण

प्रसन्न होने के लिए इतना पर्याप्त है
कि पौधे जो हमने रोपे थे
आषाढ़ के शुरूआत में
फलों की अंतहीन प्रतीक्षा में
अब हरियाने लगे हैं
उनकी महक से भर उठे हैं दिग-दिगंत

प्रसन्न हैं बच्चे उन दिनों भी
सिरे से उजाड़ रहती है जब रसोई
भूल जाते हैं सब इस बंजर प्रदेश में
निरखते रोपी हुई अपनी महक दुनिया

स्वाद को धता दिखाते बच्चे यहाँ
महक में होते हैं बड़े
और यह कम अजूबा नहीं
कि बगैर सालों-साल चखे वे
स्वाद को जान लेते हैं

इतना ज्यादा सही
इतना ज्यादा सच