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"हो गया क्या देश के सबसे सुनहले दीप का निर्वाण / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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09:40, 29 मई 2010 का अवतरण
हो गया क्या देश के
- सबसे सुनहले दीप का
- निर्वाण!
1
वह जगा क्या जगमगया देश का
- तम से घिरा प्रसाद,
वह जगा क्या था जहाँ अवसाद छाया,
- छा गया आल््हाद,
- वह जगा क्या बिछ गई आशा किरण
- की चेतना सब ओर,
वह जगा क्या स्वप्न से सूने हृदय-
- मन हो गए आबाद
- वह जगा क्या ऊर्ध्व उन्नति-पथ हुआ
- आलोक का आधार,
- वह जगा क्या कि मानवों का स्वर्ग ने
- उठकर किया आह्वान,
हो गया क्या देश के
- सबसे सुनहले दीप का
- निर्वाण!
वह जला क्या जग उठी इस जाति की
- सोई हुई तक़दीर,
वह जला क्या दासता की गल गई
- बन्धन बती जंजीर,
- वह जला क्या जग उठी आज़ाद होने
- की लगन मज़बूत
वह जला क्या हो गई बेकार कारा-
- गार की प्राचीर,
- वह जला क्या विश्व ने देखा हमें
- आश्चर्य से दृग खोल,
- वह ला क्या मर्दितों ने क्रांति की
- देखी ध्वाजा अम्लान,
- हो गया क्या देश के
- सबसे दमके दीप का
- निर्वाण!
वह हँसा तो मृम मरुस्थल में चला
- मधुमास-जीवन-श्वास,
वह हँसा तो क़ौम के रौशन भविष्यत
- का हुआ विश्वास,
- वह हँसा तो उड़ उमंगों ने किया
- फिर से नया श्रृंगार,
वह हँसा तो हँस पड़ा देश का
- रूठा हुआ इतिहास,
- वह हँसा तो जड़ उमंगों ने किया
- को न कोई ठौर,
- वह हँसा तो हिचकिचाहट-भीती-भ्रम का
- हो गया अवसान,
- हो गया क्या देश के
- सबसे चमकते दीप का
- निर्वाण!
वह उठा एक लौ में बंद होकर
- आ गई ज्यों भोर,
वह उठा तो उठ गई सब देश भर की
- आँख उनकी ओर,
- वह उठी तो उठ वड़ीं सदियाँ विगत
- अँगराइयाँ ले साथ,
वह उठा तो उठ पड़े युग-युग दबे
- दुखिया, दलित, कमजोर
- वह उठा तो उठ पड़ीं उत्साह की
- लहरें दृगों के बीच
- वह उठा तो झुक गए अन्याय,
- अत्याचार के अभिमान,
- हो गया क्या देश के
- सबसे प्रभामय दीप का
- निर्वाण!
वह न चाँदी का, न सोने का न कोंई
- धातु का अनमोल,
थी चढ़ी उस पर न हीरे और मोती
- की सजीली खोल,
- मृत्तिका कि उपमा
- सादगी थी आप,
- किन्तु उसका मान सारा स्वर्ग सकता
- था कभी क्या तोल?
- ताज शाहों के अगर उसने झुकाए
- तो तअज्जुब कौन,
- कर सका वह निम्नतम, कुचले हुओं का
- उच्चमतम उत्थान,
- हो गया था देश के
- सबसे मनस्वी दीप का
- निवार्ण!
शेष अंश शीघ्र ही आपका प्राप्त हो जाएगा।