भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चुपके से बतलाना / जा़किर अली ‘रजनीश’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Raj Kunwar (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़ाकिर अली 'रजनीश' }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> बापू तुम्हें कहूँ…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:45, 29 मई 2010 के समय का अवतरण
बापू तुम्हें कहूँ मैं बाबा, या फिर बोलूँ नाना?
सपनों में आ कर के मेरे चुपके से बतलाना।।
छड़ी हाथ में लेकरके क्यों, सदा साथ हो चलते?
दाँत आपके कहां गये, क्यों धोती एक पहनते?
हमें बताओ आखिर कैसे, तुम खाते थे खाना?
सपनों में आ कर के मेरे चुपके से बतलाना।।
टीचर कहते हैं तुमने भारत आज़ाद कराया।
एक छड़ी से तुमने था दुश्मन मार भगाया।
कैसे ये हो गया अजूबा मुझे जरा समझाना।
सपनों में आ कर के मेरे चुपके से बतलाना।।
भोला–भाला सा मैं बालक, अक्ल मेरी है थोड़ी।
कह देता हूं बात वही जो, आती याद निगोड़ी।
लग जाए गर बात बुरी तो रूठ नहीं तुम जाना।
सपनों में आ कर के मेरे चुपके से बतलाना।