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"पत्थरों में भी बनाता राह पानी देखिए / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'" के अवतरणों में अंतर

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पत्थरों  में भी  बनाता  राह  पानी  देखिए ,
                इस तरह  बढ़ती है आगे  ज़िन्दगानी देखिए !
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इस तरह  बढ़ती है आगे  ज़िन्दगानी देखिए !
  
                झूठ की बौछार से हैं  हर्फ़ जिसके धुल गए ,
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झूठ की बौछार से हैं  हर्फ़ जिसके धुल गए ,
                आँख में  सच्चाईयों  की वो  कहानी देखिए !
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आँख में  सच्चाइयों की वो  कहानी देखिए !
  
                सर्दियों में धूप उनकी , गर्मियों में छाँव भी ,
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सर्दियों में धूप उनकी , गर्मियों में छाँव भी ,
                सौंप बैठे हैं  जिन्हें  हम  हुक्मरानी  देखिए !   
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सौंप बैठे हैं  जिन्हें  हम  हुक्मरानी  देखिए !   
  
                बेबसी , बेचारगी   होगी  बुढ़ापे  के  लिए ,
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बेबसी , बेचारगी होगी  बुढ़ापे  के  लिए ,
                रोक हाक़िम  कब सके  जोशे-जवानी देखिए !  
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रोक हाक़िम  कब सके  जोशे-जवानी देखिए !  
  
                आसमानों  से हैं लेते  ज़लज़लों  के जायज़े ,
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आसमानों  से हैं लेते  ज़लज़लों  के जायज़े ,
                इस ज़मीं के  साहिबों की  बदगुमानी देखिए !
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इस ज़मीं के  साहिबों की  बदगुमानी देखिए !
  
                हुक़्मरां ऐलान पुल का इसलिए हैं कर गए ,
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हुक़्मरां ऐलान पुल का इसलिए हैं कर गए ,
                सर के ऊपर से  कहीं गुज़रे न पानी देखिए !
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सर के ऊपर से  कहीं गुज़रे न पानी देखिए !
 
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                चार मुर्दे तीन परचम दो कदम इक शोर-सा ,
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                इन्क़िलाबों  की नहीं है  यह  रवानी देखिए !
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                छोड़ मेहनत पर भरोसा हाथ दिखलाता फिरे ,
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                यूँ नहीं किस्मत ‘मधुर’ को आज़मानी देखिए !
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चार मुर्दे तीन परचम दो कदम इक शोर-सा ,
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इन्क़िलाबों  की नहीं है  यह  रवानी देखिए !
  
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छोड़ मेहनत पर भरोसा हाथ दिखलाता फिरे ,
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यूँ नहीं किस्मत ‘मधुर’ को आज़मानी देखिए !
 
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16:14, 30 मई 2010 के समय का अवतरण

पत्थरों में भी बनाता राह पानी देखिए ,
इस तरह बढ़ती है आगे ज़िन्दगानी देखिए !

झूठ की बौछार से हैं हर्फ़ जिसके धुल गए ,
आँख में सच्चाइयों की वो कहानी देखिए !

सर्दियों में धूप उनकी , गर्मियों में छाँव भी ,
सौंप बैठे हैं जिन्हें हम हुक्मरानी देखिए !

बेबसी , बेचारगी होगी बुढ़ापे के लिए ,
रोक हाक़िम कब सके जोशे-जवानी देखिए !

आसमानों से हैं लेते ज़लज़लों के जायज़े ,
इस ज़मीं के साहिबों की बदगुमानी देखिए !

हुक़्मरां ऐलान पुल का इसलिए हैं कर गए ,
सर के ऊपर से कहीं गुज़रे न पानी देखिए !

चार मुर्दे तीन परचम दो कदम इक शोर-सा ,
इन्क़िलाबों की नहीं है यह रवानी देखिए !

छोड़ मेहनत पर भरोसा हाथ दिखलाता फिरे ,
यूँ नहीं किस्मत ‘मधुर’ को आज़मानी देखिए !