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"था उचित कि गाँधी जी की निर्मम हत्या पर / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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11:43, 31 मई 2010 का अवतरण
था उचित कि गाँधी जी की निर्मम हत्या पर
तारे छिप जाते, काला हो जाता अंबर,
- केवल कलंक अवशिष्ट चंद्रमा रह जाता,
- कुछ और नज़ारा
- था जब ऊपर
- गई नज़र।
अंबर में एक प्रतीक्षा को कौतूहल था,
तारों का आनन पहले से भी उज्ज्वल था,
- वे पंथ किसी का जैसे ज्योतित करते हों,
- नभ वात किसी के
- स्वागत में
- फिर चंचल था।
उस महाशोक में भी मन में अभिमान हुआ,
धरती के ऊपर कुछ ऐसा बलिदान हुआ,
- प्रतिफलित हुआ धरणी के तप से कुछ ऐसा,
- जिसका अमरों
- के आँगन में
- सम्मान हुआ।
अवनी गौरव से अंकित हों नभ के लिखे,
क्या लिए देवताओं ने ही यश के ठेके,
- अवतार स्वर्ग का ही पृथ्वी ने जाना है,
- पृथ्वी का अभ्युत्थान
- स्वर्ग भी तो
- देखे!