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"कलयुग का अर्जुन / विजय कुमार पंत" के अवतरणों में अंतर
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देखो वहां जगह जगह जो भी खड़ा है | देखो वहां जगह जगह जो भी खड़ा है |
20:13, 31 मई 2010 के समय का अवतरण
देखो वहां जगह जगह जो भी खड़ा है
सब में मेरा ही चरित्र चढ़ा है
ये सिद्धांतों और गरिमा से लड़ने वाले
मेरे आत्मीय जन
या कौरव बन्धु नहीं
ये चरित्र हीन,अमर्यादित, भ्रष्ट
पिपासु ,और लोलुप
मनुष्य खड़ा है
हे देवकीनंदन
मुझे इन सबसे लड़ना है,
अस्त्र-शस्त्र विहीन
मैं विवश हूँ ,क्या करुँ
मुझे सदबुद्धि
या थोड़ा आशीर्वाद ही दे दो
मैं आपका प्रिय पार्थ नहीं
इस कलयुग का अर्जुन हूँ