"ज़ुल्मतकदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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15:59, 1 जून 2010 के समय का अवतरण
ज़ुल्मतकदे<ref>अँधेरा-कमरा</ref> में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है
इक शम्मा है दलील-ए-सहर<ref>सुबह का सुबूत</ref> सो ख़मोश है
ना मुज़्दा-ए-विसाल<ref>मिलन की खुशी</ref> न नज़्ज़ारा-ए-जमाल<ref>हसीन दृश्य</ref>
मुद्दत हुई कि आश्ती-ए-चश्म-ओ-गोश<ref>आँख और कान में अमन</ref> है
मै ने किया है हुस्न-ए-ख़ुदआर को बेहिजाब
अए शौक़, हाँ, इजाज़त-ए-तस्लीम-ए-होश है
गौहर<ref>मोती</ref> को अ़क्द-ए-गर्दन-ए-ख़ूबां<ref>प्रिय का गिरेबां</ref> में देखना
क्या औज<ref>ऊँचाई</ref> पर सितारा-ए-गौहरफ़रोश<ref>मोती बेचने वाला की किस्मत</ref> है
दीदार, वादा, हौसला, साक़ी, निगाह-ए-मस्त
बज़्म-ए-ख़याल मैकदा-ए-बेख़रोश है
अए ताज़ा वारिदन-ए-बिसात-ए-हवा-ए-दिल
ज़िंहार अगर तुम्हें हवस-ए-न-ओ-नोश है
देखो मुझे जो दीदा-ए-इबरत-निगाह हो
मेरी सुनो जो गोश-ए-नसीहत-नियोश है
साक़ी ब जल्वा दुश्मन-ए-ईमान-ओ-आगही
मुतरिब ब नग़्मा रहज़न-ए-तम्कीन-ओ-होश है
या शब को देखते थे कि हर गोशा-ए-बिसात
दामान-ए-बाग़बाँ-ओ-कफ़-ए-गुलफ़रोश है
लुत्फ़-ए-ख़ीराम-ए-साक़ी-ओ-ज़ौक़-ए-सदा-ए-चंग
ये जन्नत-ए-निगाह वो फ़िर्दौस-ए-गोश है
या सुबह दम जो देखिये आकर तो बज़्म में
ना वह सुरूर-ओ-सोज़ न जोश-ओ-ख़रोश है
दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब की जली हुई
इक शम्मा रह गई है सो वो भी ख़मोश है
आते हैं ग़ैब<ref>रहस्य</ref> से ये मज़ामी<ref>सोच</ref> ख़याल में
"ग़ालिब" सरीर-ए-ख़ामा<ref>कलम के घिसने की आवाज</ref> नवा-ए-सरोश<ref>परी की आवाज</ref> है