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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=ग़ालिब]][[Category:कविताएँ]]|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:ग़ालिब]]<poem>उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किये बैठा रहा अगर्चे इशारे हुआ किये
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*दिल ही तो है सियासत-ए-दर्बाँ से डर गया मैं और जाऊँ दर से तेरे बिन सदा किये
उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किये <br>रखता फिरूँ हूँ ख़ीर्क़ा-ओ-सज्जादा रहन-ए-मय बैठा रहा अगर्चे इशारे हुआ मुद्दत हुई है दावत-ए-आब-ओ-हवा किये <br><br>
दिल बेसर्फ़ा ही तो गुज़रती है सियासत, हो गर्चे उम्र-ए-दर्बाँ से डर गया <br>ख़िज़्र मैं और जाऊँ दर से तेरे बिन सदा हज़रत भी कल कहेंगे कि हम क्या किया किये <br><br>
रखता फिरूँ हूँ ख़ीर्क़ा-ओ-सज्जादा रहन-ए-मै <br>मक़दूर हो तो ख़ाक से पूछूँ के अए लईम मुद्दत हुई है दावत-ए-आब-ओ-हवा तूने वो गंज हाये गिराँमाया क्या किये <br><br>
बेसर्फ़ा ही गुज़रती है, हो गर्चे उम्र-ए-ख़िज़्र <br>किस रोज़ तोहमतें न तराशा किये अदू हज़रत भी कल कहेंगे कि हम क्या किया किस दिन हमारे सर पे न आरे चला किये <br><br>
मक़दूर सोहबत में ग़ैर की न पड़ी हो तो ख़ाक से पूछूँ के अए लैइम <br>कहीं ये ख़ू तूने वो गंज हाये गिराँमाया क्या देने लगा है बोसे बग़ैर इल्तिजा किये <br><br>
किस रोज़ तोहमतें न तराशा किये अदू <br>ज़िद की है और बात मगर ख़ू बुरी नहीं किस दिन हमारे सर पे न आरे चला भूले से उस ने सैकड़ों वादे-वफ़ा किये <br><br>
सोहबत में ग़ैर की न पड़ी हो कहीं ये ख़ू <br>देने लगा है बोसे बग़ैर इल्तिजा किये <br><br> ज़िद की है और बात मगर ख़ू बुरी नहीं <br>भूले से उस ने सैकड़ों वादे-वफ़ा किये <br><br> "ग़ालिब" तुम्हीं कहो कि मिलेगा जवाब क्या <br>माना कि तुम कहा किये और वो सुना किये <br><br/poem>{{KKMeaning}}
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