भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम गाँधी की प्रतिभा के इतने पास खड़े / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} हम गाँधी की प्रतिभा के इतने प…)
(कोई अंतर नहीं)

01:17, 3 जून 2010 का अवतरण


हम गाँधी की प्रतिभा के इतने पास खड़े

हम देख नहीं पाते सत्‍ता उनकी महान,

उनकी आभा से आँखें होतीं चकाचौंध,
गुण-वर्णन में
साबित होती
गूँगी ज़बान।


वे भावी मानवता के हैं आदर्श एक,

असमर्थ समझने में है उनको वर्तमान,

वर्ना सच्‍चाई और अहिंसा की प्रतिमा
यह जाती दुनिया
से होकर
लोहू लुहान!


जो सत्‍यं, शिव, सुन्‍दर, शुचितर होती है

दुनिया रहती है उसके प्रति अंधी, अजान,

वह उसे देखती, उसके प्रति नतशिर होती
जब कोई कवि
करता उसको
आँखें प्रदान।


जिन आँखों से तुलसी ने राघव को देखा,

जिस अतर्दृग से सूरदास ने कान्‍हा को,

कोई भविष्‍य कवि गाँधी को भी देखेगा,
दर्शाएगा भी
उनकी सत्‍ता
दुनिया को।


भारत का गाँधी व्‍यक्‍त नहीं तब तक होगा

भारती नहीं जब तक देती गाँधी अपना,

जब वाणी का मेधावी कोई उतरेगा,
तब उतरेगा
पृथ्‍वी पर गाँधी
का सपना।


जायसी, कबीरा, सूरदास, मीरा, तुलसी,

मैथिली, निराला, पंत, प्रसाद, महादेवी,

ग़ालिबोमीर, दर्दोनज़ीर, हाली, अकबर,

इक़बाल, जोश, चकबस्‍त फिराक़, जिगर, सागर

की भाषा निश्‍चयवरद पुत्र उपजाएगी
जिसके प्रसाद-माधुर्य-ओजमय वचनों में
मेरी भविष्‍य
वाणी सच्‍ची
हो जाएगी।