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"गर सारे परिंदों को / कविता किरण" के अवतरणों में अंतर
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गर सारे परिंदों को पिंजरों में बसा लोगे | गर सारे परिंदों को पिंजरों में बसा लोगे | ||
− | सहरा में समंदर का | + | सहरा में समंदर का फिर किससे पता लोगे |
ये सोच के हम भीगे पहरों तक बारिश में | ये सोच के हम भीगे पहरों तक बारिश में | ||
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कब तक मेरे पांवों के कांटे ही निकालोगे | कब तक मेरे पांवों के कांटे ही निकालोगे | ||
− | सूरज हो, रहो सूरज,सूरज न रहोगे | + | सूरज हो, रहो सूरज,सूरज न रहोगे गर |
सजदे में सितारों के सर अपना झुका लोगे | सजदे में सितारों के सर अपना झुका लोगे | ||
रूठों को मनाने में है देर लगे कितनी | रूठों को मनाने में है देर लगे कितनी | ||
− | दिल भी मिल जायेंगे | + | दिल भी मिल जायेंगे गर हाथ मिला लोगे |
आसां हो जायेगी हर मुश्किल पल-भर में | आसां हो जायेगी हर मुश्किल पल-भर में | ||
− | + | गर अपने बुजुर्गों की तुम दिल से दुआ लोगे | |
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09:39, 4 जून 2010 का अवतरण
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गर सारे परिंदों को पिंजरों में बसा लोगे
सहरा में समंदर का फिर किससे पता लोगे
ये सोच के हम भीगे पहरों तक बारिश में
तुम अपनी छतरी में हमको भी बुला लोगे
इज़हारे-मुहब्बत की कुछ और भी रस्में हैं
कब तक मेरे पांवों के कांटे ही निकालोगे
सूरज हो, रहो सूरज,सूरज न रहोगे गर
सजदे में सितारों के सर अपना झुका लोगे
रूठों को मनाने में है देर लगे कितनी
दिल भी मिल जायेंगे गर हाथ मिला लोगे
आसां हो जायेगी हर मुश्किल पल-भर में
गर अपने बुजुर्गों की तुम दिल से दुआ लोगे