भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रहस्य / भाग २ / कामायनी / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (New page: लेखक: जयशंकर प्रसाद Category:कविताएँ Category: जयशंकर प्रसाद ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ चि...) |
छो |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | |||
लेखक: [[जयशंकर प्रसाद]] | लेखक: [[जयशंकर प्रसाद]] | ||
[[Category:कविताएँ]] | [[Category:कविताएँ]] |
14:01, 28 मार्च 2007 का अवतरण
लेखक: जयशंकर प्रसाद
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
चिर-वसंत का यह उदगम है,
पतझर होता एक ओर है,
अमृत हलाहल यहाँ मिले है,
सुख-दुख बँधते, एक डोर हैं।"
"सुदंर यह तुमने दिखलाया,
किंतु कौन वह श्याम देश है?
कामायनी बताओ उसमें,
क्या रहस्य रहता विशेष है"
"मनु यह श्यामल कर्म लोक है,
धुँधला कुछ-कुछ अधंकार-सा
सघन हो रहा अविज्ञात
यह देश, मलिन है धूम-धार सा।
कर्म-चक्र-सा घूम रहा है,
यह गोलक, बन नियति-प्रेरणा,
सब के पीछे लगी हुई है,
कोई व्याकुल नयी एषणा।
'''''-- Done By: Dr.Bhawna Kunwar'''''