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"क्रोटन की टहनी / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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कच्चे मन सा काँच पात्र जिसमें क्रोटन की टहनी
 
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ताज़े पानी से नित भर टेबुल पर रखती बहनी!
 
ताज़े पानी से नित भर टेबुल पर रखती बहनी!
धागों सी कुछ उसमें पतले जड़ें फूट अब आईं
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धागों सी कुछ उसमें पतली जड़ें फूट अब आईं
 
निराधार पानी में लटकी देतीं सहज दिखाई!
 
निराधार पानी में लटकी देतीं सहज दिखाई!
 
तीन पात छींटे सुफ़ेद सोए चित्रित से जिन पर,
 
तीन पात छींटे सुफ़ेद सोए चित्रित से जिन पर,

14:27, 4 जून 2010 के समय का अवतरण

कच्चे मन सा काँच पात्र जिसमें क्रोटन की टहनी
ताज़े पानी से नित भर टेबुल पर रखती बहनी!
धागों सी कुछ उसमें पतली जड़ें फूट अब आईं
निराधार पानी में लटकी देतीं सहज दिखाई!
तीन पात छींटे सुफ़ेद सोए चित्रित से जिन पर,
चौथा मुट्ठी खोल हथेली फैलाने को सुन्दर!

बहन, तुम्हारा बिरवा, मैंने कहा एक दिन हँसकर,
यों कुछ दिन निर्जल भी रह सकता है मात्र हवा पर!
किंतु चाहती जो तुम यह बढ़कर आँगन उर दे भर
तो तुम इसके मूलों को डालो मिट्टी के भीतर!

यह सच है वह किरण वरुणियों के पाता प्रिय चुंबन
पर प्रकाश के साथ चाहिए प्राणी को रज का तन!
पौधे ही क्या, मानव भी यह भू-जीवी निःसंशय,
मर्म कामना के बिरवे मिट्टी में फलते निश्वय!