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"मर्म व्यथा / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
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वृथा प्रणय की अमर साध दी! | वृथा प्रणय की अमर साध दी! | ||
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हृदय दहन रे हृदय दहन, | हृदय दहन रे हृदय दहन, | ||
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यह सुलगेगी, होगी न सहन, | यह सुलगेगी, होगी न सहन, | ||
चिर स्मृति की श्वास समीर साथ दी! | चिर स्मृति की श्वास समीर साथ दी! | ||
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सोने सी तप निकलेगी | सोने सी तप निकलेगी | ||
प्रेयसि प्रतिमा ममता अगाध दी! | प्रेयसि प्रतिमा ममता अगाध दी! | ||
− | प्राणों में चिर | + | प्राणों में चिर व्यथा बाँध दी! |
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14:49, 4 जून 2010 का अवतरण
प्राणों में चिर व्यथा बाँध दी!
क्यों चिर दग्ध हृदय को तुमने
वृथा प्रणय की अमर साध दी!
पर्वत को जल दारु को अनल,
वारिद को दी विद्युत चंचल
फूल को सुरभि, सुरभि को विकल
उड़ने की इच्छा अबाध दी!
हृदय दहन रे हृदय दहन,
प्राणों की व्याकुल व्यथा गहन!
यह सुलगेगी, होगी न सहन,
चिर स्मृति की श्वास समीर साथ दी!
प्राण गलेंगे, देह जलेगी
मर्म व्यथा की कथा ढलेगी
सोने सी तप निकलेगी
प्रेयसि प्रतिमा ममता अगाध दी!
प्राणों में चिर व्यथा बाँध दी!