भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"महानगर / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKrachna}} <poem> महानगर लोगों को ढूँढता फिरा मैं लोग नहीं मिले घर मिल…)
(कोई अंतर नहीं)

22:30, 4 जून 2010 का अवतरण

साँचा:KKrachna

महानगर

लोगों को ढूँढता फिरा मैं
लोग नहीं मिले
घर मिले बहुत
मार तमाम घर

घर थे बहुत
और लोग नहीं थे घरों में

घर ढूँढता फिरा मैं
घर नहीं मिले
लोग मिले बहुत
मार तमाम लोग

लोग थे बहुत
और उनकी आंखों में घर थे
1998