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"रास्तों की नज़्म / मदन कश्यप" के अवतरणों में अंतर

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13:04, 5 जून 2010 का अवतरण

कुछ रास्ते जाते हैं पहाड़ की जड़ों के पास
जहाँ से फूटती हैं पगडंडियाँ चोटी पर जाने के लिए

कुछ जाते हैं समंदर की ओर
पर लहरों तक पहुँचने से पहले ही ठिठक जाते हैं

कुछ चलते हैं दूर तक नदी के बराबर
फिर मुड़ जाते हैं किसी दूसरी तरफ

अक्सर रास्तों से फूटते हैं रास्ते
भले ही कुछ चैराहों के बाद बदल जाते हों उनके नाम
पर कभी-कभी किसी बीहड़ में अचानक दम तोड़ देता है कोई रास्ता

आदमी ही नहीं बाजदफा रास्ते भी भूल जाते हैं अपनी राह
जब रास्ता गलत हो
मंजिल तक वही पहुँच पाता है जो रास्ता भटक जाता है!