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"रफ़ूगरी / मदन कश्यप" के अवतरणों में अंतर
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हर आदमी अपने फटे को ढंकना चाहता है | हर आदमी अपने फटे को ढंकना चाहता है |
10:22, 6 जून 2010 के समय का अवतरण
हर आदमी अपने फटे को ढंकना चाहता है
इस महान कारीगरी से
इसीलिए बुनकरों से ज्यादा कामयाब हो रहे हैं रफूगर
यह छिपाने और काम चलाने का युग है
बस एक नजर में सब कुछ ठीक-ठाक लगे
फिर दूसरों के पास भी वक्त कहाँ है कि आँखें फाड़-फाड़कर देखे
कल की फिक्र महज इतनी-सी
कि कितना ज्यादा बटोर लिया जाए
कल के लिए
इस तदर्थयुग की
सबसे उन्नत कला है रफूगरी
जिसके सामने हम नतमस्तक हैं!