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"हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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11:39, 6 जून 2010 का अवतरण
हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रखे,
किसे सैराब करे वो किसे प्यासा रखे ।
कौन निभाता है उम्र भर ताल्लुक़ इतना,
ऐ मेरी जान के दुश्मन तुझे अल्लाह रखे ।
हंस ना इतना फ़क़ीरों के अकेलेपन पर,
जा खु़दा मेरी तरह तुझको भी तन्हा रखे ।
कम नहीं तमा-ए-इबादत भी हिर-ए-ज़र से,
फ़क्र तो वो है के जो दीन ना दुनिया रखे ।
दिल भी पागल है के उस शख़्स से वाबस्ता है,
जो किसी और का होने दे ना अपना रखे ।
मुझको अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तेरा,
कोई तुझसा हो तो फिर नाम भी तुझसा रखे ।
ये अता’अत है क़ता’अत है के चाहत है ’फ़राज़’,
हम तो राज़ी हैं वो जिस हाल में जैसा रखे ।