भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बस गवैया / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
यात्रियों को लुभा सके उसकी आवाज़
 
यात्रियों को लुभा सके उसकी आवाज़
 
निकलें गीत पेट से उसके
 
निकलें गीत पेट से उसके
आओ बंध!  दुआ करें
+
आओ बंधु!  दुआ करें
  
 
रचनाकाल : 1991
 
रचनाकाल : 1991
 
<poem>
 
<poem>

11:46, 6 जून 2010 के समय का अवतरण

चलती बस की खड़ी भीड़ में
देखो बच्चा चूमता है
चूमता है दोनों हाथ
चूमता शीशे की पट्टियाँ
सूखा गला साफ़ करता है
होठों पर जीभ फिराता है
वह शुरू करेगा अब कोई गीत

दिन भर वह गा सके मधुरतम
यात्रियों को लुभा सके उसकी आवाज़
निकलें गीत पेट से उसके
आओ बंधु! दुआ करें

रचनाकाल : 1991