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"बेटियां / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

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'''बेटियां'''
 
अपूर्वा के चौथे जन्म दिवस पर
 
 
 
वो पल बड़ा बेमिसाल पल होता है
 
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जब किसी आंगन में
 
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वो लोग बड़े बदनसीब होते हैं
 
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जिनके घर बेटियां दु:ख पाती हैं
 
जिनके घर बेटियां दु:ख पाती हैं
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अपूर्वा के चौथे जन्म दिवस पर
  
 
रचनाकाल:जून 2000  
 
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16:20, 6 जून 2010 के समय का अवतरण

वो पल बड़ा बेमिसाल पल होता है
जब किसी आंगन में
वो अपने कदम रखती हैं
पर खोल के खुशियां चहक उठती हैं

अपनी आंखों में
खुशगवार सुबहें लेकर
बेजोड़ खिलखिलाहट औं’ उमंगों की तरह
बेटियां आती हैं
इन्द्रधनुष के सात रंगों की तरह

अपने हाथों में
महकते हुए सपने लेकर
घुप्प अन्धेरों में
चमकते हुए सितारे की तरह
बेटियां आती हैं
इक हसीन नज़ारे की तरह

बेटियां सबके घर नहीं आतीं
बेटियां बड़े नसीब से आती हैं
वो लोग बड़े बदनसीब होते हैं
जिनके घर बेटियां दु:ख पाती हैं

अपूर्वा के चौथे जन्म दिवस पर

रचनाकाल:जून 2000