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"उधेड़-बुन / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर
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जिसमें हम जी रहे हैं | जिसमें हम जी रहे हैं |
16:26, 6 जून 2010 के समय का अवतरण
ये कैसा नरक है
जिसमें हम जी रहे हैं
जाने-अनजाने ज+हर पी रहे हैं
इस सवाल से क्यों पड़ता है
बार-बार मेरा वास्ता
मेरे लोगों को बचा ले जो
वह कौन-सा है रास्ता
बार-बार अपने शहीदों का
ख्याल आता है
फिर अपनी जवानी पर
मलाल आता है
अपने ही लोगों पर
जाने क्यों प्यार आता है
ये कैसा विश्वास है
जो बार-बार आता है
रचनाकाल:1990