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"दूसरा वनवास / कैफ़ी आज़मी" के अवतरणों में अंतर

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याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये
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* [[दूसरा वनवास (कविता) / कैफ़ी आज़मी]]
 
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रक़्सेदीवानगी आँगन में जो देखा होगा
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छह दिसंबर को श्रीराम ने सोचा होगा
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इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आये
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जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशां
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प्यार की कहकशां लेती थी अँगडाई जहाँ
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मोड़ नफ़रत के उसी राहगुज़र से आये
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धर्म क्या उनका है क्या ज़ात है यह जानता कौन
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घर न जलता तो उन्हें रात मे पहचानता कौन
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घर जलाने को मेरा लोग जो घर में आये
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शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारा ख़ंजर
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तुमने बाबर की तरफ़ फेंके थे सारे पत्थर
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है मेरे सर की ख़ता ज़ख़्म जो सर में आये
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पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
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कि नज़र आये वहाँ ख़ून के गहरे धब्बे
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पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
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राजधानी की फ़िज़ा आयी नहीं रास मुझे
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छह दिसंबर को मिला दूसरा बनवास मुझे !
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08:54, 9 जून 2010 के समय का अवतरण

दूसरा वनवास
Dusravanvaas 2.jpg
रचनाकार कैफ़ी आज़मी
प्रकाशक डायमंड पाकेट बुक्स
वर्ष 2008
भाषा हिन्दी
विषय
विधा
पृष्ठ 160
ISBN 81-288-0982-2
विविध
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।