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"प्रार्थना / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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जग के उर्वर आँगन में
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बरसो ज्योतिर्मय जीवन!
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बरसो लघु लघु तृण तरु पर
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हे चिर अव्यय, चिर नूतन!
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बरसो कुसुमों के मधु बन,
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प्राणो में अमर प्रणय धन;
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स्मिति स्वप्न अधर पलकों में
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उर अंगो में सुख यौवन!
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छू छू जग के मृत रज कण
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कर दो तृण तरु में चेतन,
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मृन्मरण बांध दो जग का
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दे प्राणो का आलिंगन!
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बरसो सुख बन, सुखमा बन,
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बरसो जग जीवन के घन!
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दिशि दिशि में औ' पल पल में
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बरसो संसृति के सावन!
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</poem>
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10:40, 10 जून 2010 के समय का अवतरण