भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दुआ की बात करते हो, यहाँ गाली नहीं मिलती / सर्वत एम जमाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सर्वत एम जमाल }} {{KKCatGhazal}} <poem> दुआ की बात करते हो, यहाँ …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:17, 10 जून 2010 के समय का अवतरण
दुआ की बात करते हो, यहाँ गाली नहीं मिलती
मियां दो रूपये में चाय की प्याली नहीं मिलती
यहाँ जीना तो मुश्किल है मगर मरना मुसीबत है
सुना है अब तो कोई कब्र भी खाली नहीं मिलती
कहीं तो हर कदम पर सिर्फ़ सब्ज़ा ही नजर आए
कहीं सौ कोस चलने पर भी हरियाली नहीं मिलती
हमारे दौर के बच्चों ने सब कुछ देख डाला है
मदारी को तमाशों पर कोई ताली नहीं मिलती
सफेदी ओढ़ने का यह नतीजा है कि लोगों के
लहू में भी लहू जैसी कहीं लाली नहीं मिलती
गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, मौत, सब तो हैं
मगर सरकार का दावा है, बदहाली नहीं मिलती