भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सब ये कहते हैं कि हैं सौगात दिन / सर्वत एम जमाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सर्वत एम जमाल }} {{KKCatGhazal}} <poem> सब ये कहते हैं कि हैं सौ…)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:22, 10 जून 2010 के समय का अवतरण

सब ये कहते हैं कि हैं सौगात दिन
मुझको लगते हैं मगर आघात दिन

रात के खतरे गये, सूरज उगा
ले के आया है नये ख़तरात दिन

तीरगी, सन्नाटा, चुप्पी, सब तो हैं
कर रहे हैं रात को भी मात दिन

शब के ठुकराए हुओं को कौन गम
इन को तो ले लेंगे हाथों हाथ दिन

दुःख के थे, भारी लगे, बस इस लिए
सब के सब करने लगे खैरात दिन

दूध से पानी अलग हो किस तरह
लोग कोशिश कर रहे हैं रात दिन

हमको बख्शी चार दिन की जिंदगी
जबकि थे दुनिया में पूरे सात दिन