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"बर्फ को पिघलने दो / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर
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04:01, 11 जून 2010 का अवतरण
बातचीत चलने दो,
बर्फ को पिघलने दो|
दर्द का तकाजा है,
आँख को मचलने दो|
कुछ सितारे चमकेंगे,
आफ़ताब ढलने दो|
ओस का करो स्वागत,
टार को तो गलाने दो |