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चाँद बाबा गिल्ली डंडा इमलियाँ, | चाँद बाबा गिल्ली डंडा इमलियाँ, |
08:51, 11 जून 2010 का अवतरण
जैसे जैसे हम बड़े होते गये,
झूठ कहने मे खरे होते गये |
चाँद बाबा गिल्ली डंडा इमलियाँ,
सब किताबों के सफे होते गये |
अब तलाक तो दूसरा कोई न था,
रफ्ता रफ्ता तीसरे होते गये |
एक बित्ता कद हमारा क्या बढ़ा,
हम अकारण ही बुरे होते गये |
जंगलों में बागबां कोई नहीं,
इसलिए पौधे हरे होते गये |