भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तेरी मेरी सबकी बात / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय वाते |संग्रह= गज़ल / विजय वाते }} <poem> बुनियादी …)
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>
बुनियादी हक ? झूठी बात,
+
बुनियादी हक़ ? झूठी बात,
जलसे, नारे, घूसे, लात |
+
जलसे, नारे, घूसे, लात
  
 
विगलित मन अंधा चेतन,  
 
विगलित मन अंधा चेतन,  
मेरी तेरी सबकी बात|
+
मेरी तेरी सबकी बात
 
   
 
   
 
सूरज को भी नहीं पता,
 
सूरज को भी नहीं पता,
निशा निरापद, अटल प्रभात|
+
निशा निरापद, अटल प्रभात
  
 
लंगड़े तर्क, दिलों मे फर्क,
 
लंगड़े तर्क, दिलों मे फर्क,
तारों की कुंठित बारात
+
तारों की कुंठित बारात
  
पल भर चमके लुप्त हो गये,  
+
पल भर चमके लुप्त हो गए,  
जुगनू जैसी काली रात |
+
जुगनू जैसी काली रात
  
 
सिस्टम ये बदलेंगी यारों  
 
सिस्टम ये बदलेंगी यारों  
लंगडी, लूली, शिष्ट जमात |</poem>
+
लंगडी, लूली, शिष्ट जमात
 +
</poem>

11:27, 11 जून 2010 का अवतरण

बुनियादी हक़ ? झूठी बात,
जलसे, नारे, घूसे, लात ।

विगलित मन अंधा चेतन,
मेरी तेरी सबकी बात ।
 
सूरज को भी नहीं पता,
निशा निरापद, अटल प्रभात ।

लंगड़े तर्क, दिलों मे फर्क,
तारों की कुंठित बारात ।

पल भर चमके लुप्त हो गए,
जुगनू जैसी काली रात ।

सिस्टम ये बदलेंगी यारों
लंगडी, लूली, शिष्ट जमात ।