भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"डूबना तेरे ख्यालों में भला लगता है / कविता किरण" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता किरण |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> डूबना तेरे ख्यालो…)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:14, 11 जून 2010 के समय का अवतरण

डूबना तेरे ख्यालों में भला लगता है
तेरी यादों से बिछड़ना भी सजा लगता है

क्यों क़दम मेरे तेरी और खिंचे आते हैं
तेरे घर का कोई दरवाज़ा खुला लगता है

जब तेरा ख्वाब हो आबाद मेरी पलकों में
दिल भी धडके तो निगाहों को बुरा लगता है

लड़खड़ा जाएँ क़दम साँस भी हो बेकाबू
जब शहर में तेरे आने का पता लगता है

आँख अंगूरी हुई होंठ हुए अंगारे
तूने कानों में कोई शेर कहा लगता है

ऐ 'किरण' बहुत जहाँ में हैं ग़ज़ल गो लेकिन
तेरा अंदाज़ ज़माने से जुदा लगता है