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"इसलिए कोई गजल गाई नहीं / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर

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(कोई अंतर नहीं)

01:59, 13 जून 2010 के समय का अवतरण

आज तन्हाई भी तन्हाई नहीं
इसलिए कोई गजल गई नहीं

जाहिरा तो थी नहीं कोई वजह
नींद लेकिन रात भर आई नहीं

निभ गई बस जब तलाक भी निभ गई
यों निभाने की कसम खाई नहीं

जब मिले तो यों मिले कि हर तरफ
ढूँढने पर भी वजह पाई नहीं

थी मुसलसल साथ , बिछड़ी ही नहीं
याद तेरी इस लिए आई नहीं

आज सुन लो जिन्दगी की वो खबर
जो किसी अख्बार मे आई नहीं