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"क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर
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20:16, 13 जून 2010 के समय का अवतरण
क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
ज़ख्म ही ये मुझे लगता नहीं भरने वाला
उसको भी हम तिरे कूचे में गुज़ार आये हैं
जिंदगी में वो जो लम्हा था संवरने वाला
उसका अंदाज़ ए सुख़न सबसे जुदा था शायद
बात लगती हुई लहजा वो मुकरने वाला
शाम होने को है और आँख में इक ख़्वाब नहीं
कोई इस घर में नहीं रोशनी करने वाला
दस्तरस में हैं अनासिर के इरादे किसके
सो बिखर के ही रहा कोई बिखरने वाला
इसी उम्मीद पे हर शाम बुझाये हैं चिराग़
एक तारा है सर ए बाम उभरने वाला