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"उसके मसीहा के लिए / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

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अजनबी!
 
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और दर्द हद से गुज़र जाए
 
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तेरी पलकों से शबनम चुने
 
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हाला=वॄत्त;  क़ामत= देह की गठन
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13:11, 14 जून 2010 के समय का अवतरण

अजनबी!
कभी ज़िन्दगी में अगर तू अकेला हो
और दर्द हद से गुज़र जाए
आँखें तेरी
बात-बेबात रो रो पड़ें
तब कोई अजनबी
तेरी तन्हाई के चाँद का नर्म हाला<ref>वृत्त</ref> बने
तेरी क़ामत<ref>देह की गठन</ref> का साया बने
तेरे ज़ख़्मों पे मरहम रखे
तेरी पलकों से शबनम चुने
तेरे दुख का मसीहा बने

शब्दार्थ
<references/>