भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नज़र भी आया उसे अपने पास भी देखा / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:51, 14 जून 2010 के समय का अवतरण
नज़र भी आया उसे अपने पास भी देखा
मिरी निगाह ने ये इल्तिबास भी देखा
बहुत दिनों पे चले और घर से चलते वक़्त
किसी की आँख से अपना लिबास भी देखा
यही कहा कि नहीं उसका रास्ता था अलग
फिर उसके बाद ही खुद को उदास भी देखा
मुकाबले पे ज़माने के आ गए और फिर
ब पेश ए आईना दिल का हिरास भी देखा
वो मुझमें सोच के किस जाविये से रोशन हो
यकीं भी देख लिया है क़यास भी देखा