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"फिर तेरे शहर से गुज़रा है वो बदल की तरह / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

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19:59, 14 जून 2010 के समय का अवतरण

फिर तेरे शहर से गुज़रा है वो बादल की तरह
दस्त ए गुल फैला हुआ है मिरे आँचल की तरह

कह रहा है किसी मौसम की कहानी अब तक
जिस्म बरसात में भीगे हुए जंगल की तरह

ऊँची आवाज़ में उसने तो कभी बात न की
खफगियों में भी लहजा रहा कोमल की तरह

पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है
फैलता जाता है फिर आँख के काजल की तरह

अब किसी तौर से घर जाने की सूरत ही नहीं
रास्ते मेरे लिए हो गए दलदल की तरह