भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कितने आसान सबके सफर हो गये / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
वीनस केशरी (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=विजय वाते |संग्रह= ग़ज़ल / विजय वाते }} {{KKCatGhazal}} <poem> या तो ब…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:31, 15 जून 2010 के समय का अवतरण
या तो बहरे कान से टकरा के मर जाती है बात
या हवाओं में कहीं लहरा के मर जाती है बात
दिल से दिल का रास्ता सीधा भी है, आसाँ भी है
अक्ल के दीवार से टकरा के मर जाती है बात
हर तरफ इक शोर है नारे हाँ जयजयकार है
आसमानी शोर में घबरा के मर जाती है बात
बात लगती है भली जब सब जुबानें एक हो
तर्जुमें के फेर में चकरा के मर जाती है बात