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"आँचल मे सज़ा लेना कलियाँ जुल्फों मे सितारे भर लेना / मजरूह सुल्तानपुरी" के अवतरणों में अंतर

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हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह
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आँचल में सजा लेना कलियाँ जुल्फों में सितारे भर लेना
उठती है हर निगाह ख़रीदार की तरह
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ऐसे भी कभी जब शाम ढले तब याद हमें भी कर लेना
  
इस कू-ए-तिश्नगी में बहुत है के एक जाम
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आया था यहाँ बेगाना सा कहल दूंगा कहीं दीवाना सा
हाथ आ गया है दौलत-ए-बेदार की तरह
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दीवाने के खातिर तुम कोई इलज़ाम न अपने सर लेना
  
वो तो हैं कहीं और मगर दिल के आस पास
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रास्ता जो मिले अनजान कोई आ जाए अगर तूफान कोई  
फिरती है कोई शय निगाह-ए-यार की तरह
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अपने को अकेला जान के तुम आँखों मे न आंसूं भर लेना
 
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सीधी है राह-ए-शौक़ प यूँ ही कभी कभी
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ख़म हो गैइ है गेसू-ए-दिलदार की तरह
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अब जा के कुच खुला हुनर-ए-नाखून-ए-जुनून
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ज़ख़्म-ए-जिगर हुए लब-ओ-रुख़्सार की तरह
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'मजरूह' लिख रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का नाम
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हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह
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02:03, 15 जून 2010 के समय का अवतरण

आँचल में सजा लेना कलियाँ जुल्फों में सितारे भर लेना
ऐसे भी कभी जब शाम ढले तब याद हमें भी कर लेना

आया था यहाँ बेगाना सा कहल दूंगा कहीं दीवाना सा
दीवाने के खातिर तुम कोई इलज़ाम न अपने सर लेना

रास्ता जो मिले अनजान कोई आ जाए अगर तूफान कोई
अपने को अकेला जान के तुम आँखों मे न आंसूं भर लेना