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"क़रार दे के किया जिसने बेक़रार मुझे / गोविन्द गुलशन" के अवतरणों में अंतर
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00:30, 16 जून 2010 का अवतरण
ग़ज़ल
क़रार दे के किया जिसने बेक़रार मुझे है इंतिज़ार उसी पल का इंतिज़ार मुझे
ये और बात कि आँसू हुए हैं ख़र्च मगर समझ में आ गया ख़्वाबों का कारोबार मुझे
जो प्यास है तो क़रीब आओ और बुझालो प्यास मैं एक दरिया हूँ समझो न रेगज़ार मुझे
सदा-ए-दिल तो बहुत दूर तक पहुँचती है पुकारते तो सही दिल से एक बार मुझे
उसे छुआ तभी दरवाज़ा-ए-यक़ीन खुला नहीं था अपनी ही आँखों पे ऐतबार मुझे
वो फूल ख़ाना-ए-दिल में महकते रहते हैं जो फूल दे के गई थी कभी बहार मुझे