भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मुझे भुलाये कभी याद करके रोये भी / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बशीर बद्र |संग्रह=आस / बशीर बद्र }} {{KKCatGhazal}} <poem> मुझे भ…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
08:50, 16 जून 2010 के समय का अवतरण
मुझे भुलाये कभी याद कर के रोये भी
वो अपने आप को बिखराये और पिरोये भी
बहुत ग़ुबार भरा था दिलों में दोनों के
मगर वो एक ही बिस्तर पे रात सोये भी
बहुत दिनों से नहाये नहीं हैं आँगन में
कभी तो राह की बारिश हमें भिगोये भी
ये तुमसे किसने कहा रात से मैं डरता हूँ
ज़रूर आये मेरे बाज़ुओं में सोये भी
वो नौजवाँ तो जवानी की नींद में ग़ुम था
बहुत पुकारा, झंझोड़ा, लिपट के रोये भी
यक़ीन जानिये अहसास तक न होगा हमें
नसों में सुईयाँ कोई अगर चुभोये भी