"डरे हुओं से डर / विष्णु नागर" के अवतरणों में अंतर
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14:58, 16 जून 2010 के समय का अवतरण
मैं सबसे ज्यादा डरता हूं उनसे
जो हमेशा डरे हुए रहते हैं
मुझे न जाने क्यों लगता है
कि एक दिन वे मुझ पर ऐसा वार करेंगे
कि मैं बच नहीं पाऊंगा
मैं जब उनसे कहता हूं कि भाई मुझसे डरा मत करो
तो पता नहीं क्यों वे मेरी बात सुनकर
और ज्यादा डर जाते हैं
तब मैं उनके इस डर से इतना डर जाता हूं कि
थर-थर कांपने लगता हूं
मेरी ये हालत देख भी वे जब मुझ पर हंसते नहीं
तो मैं सोचता हूं
कि हे भगवान ऐसी खतरनाक जिंदगी से तो मौत ही भली
मैं डरे हुओं से जिंदगी की भीख मांगने लगता हूं
इस पर भी जब वे एक-दूसरे को हक्का-बक्का होकर देखते हैं
तो मुझे लगता है कि ये तो दरअसल मुझे मारने की तैयारी है
जब वे वहां से भाग खड़े होते हैं
तो मुझे लगता है कि
अवश्य वे अपने हथियार लेने गए होंगे
यह जिंदगी अब कुछ क्षणों की है
और मैं अपने से कहता हूं अब तू भाग
लेकिन जब मैं भाग नहीं पाता
और डर के मारे ईश्वर को याद भी नहीं कर पाता
तो लगता है कि मैं तो मर चुका हूं
अब रोना-धोना शुरू हो गया होगा
मगर जब रोना-धोना सुनाई नहीं देता
तो लगता है कि अब तो बिल्कुल पक्का है
कि मैं मर चुका हूं.